1975 से 1977 के दौरान 27 महीने के इमरजेंसी में निश्चित रूप से लोकतंत्र का गला घोंटा गया था. सत्ता विरोधी लोगों पर सितम ढाये गये थे. लेकिन, क्या मोदी राज इमरजेंसी से कम है? सीएए-एनआरसी विरोध प्रदर्शनों से लेकर कुख्यात भीमा कोरेगांव गिरफ़्तारियों तक, दीदे फाड़कर देख लीजिये.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में सैकड़ों ‘राजनीतिक कैदी’ सलाखों के पीछे हैं. मुकदमे अभी भी लंबित हैं। कुछ पता नहीं, कब छूटेंगे? बिहार चुनाव सिर पर है, तो "इमरजेंसी में लोकतंत्र की हत्या" वाली ढोल ज़ोरों की बज रही है. जेपी को याद किया जा रहा है, जिनके फ़र्ज़ी समाजवादी चेले आज सत्ता का सुख भोग रहे हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2022 के अंतिम डेटा से पता चलता है, कि विचाराधीन कैदियों की संख्या 4,34,302 या कुल कैदियों का 75.8 प्रतिशत है। 2016 से 2020 के बीच, 24,134 व्यक्तियों पर अकेले गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए हैं, जिनमें से केवल 386 को कथित तौर पर बरी किया गया है। वरवारा राव, नताशा नरवाल, देवांगना कलिता जैसे जो लोग जेल से छूटे, वो भय में जी रहे हैं. उन पर पहरा है. वो एकदम खामोश हैं.
यहाँ मोदी शासन के कुछ हाई-प्रोफाइल राजनीतिक क़ैदियों को जान लीजिये। उमर खालिद से खुर्रम परवेज़ तक, असंख्य नाम, जिनकी यातनाओं से देश को मतलब नहीं. गोदिये दल्ले, 'इमरजेंसी से 50 साल' की ढोल बजा रहे हैं. कभी पूछते हो तानाशाह सरकार से,
कबतक इन्हें जेल में सड़ाओगे?
1-उमर खालिद
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद को फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों से पहले अपने भाषणों के माध्यम से लोगों को भड़काने के आरोप में सितंबर 2020 में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था। उन्हें बिना जमानत के हिरासत में रखा गया है, उनके समर्थकों का दावा है कि उनके खिलाफ आरोप राजनीति से प्रेरित हैं, और सिस्टम से असहमति को दबाने के उद्देश्य से हैं। वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में कैद है।
2-सुरेंद्र गाडलिंग
नागपुर के वकील और दलित अधिकार कार्यकर्ता सुरेंद्र गाडलिंग को जून 2018 में भीमा कोरेगांव मामले के सिलसिले में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था। उन्हें साजिश और देशद्रोह सहित कई आरोपों के तहत बिना किसी सुनवाई के वर्षों तक हिरासत में रखा गया है। वह नवी मुंबई की तलोजा सेंट्रल जेल में कैद है।
3-रोना विल्सन
राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए समिति के एक कार्यकर्ता और जनसंपर्क सचिव रोना विल्सन को जून 2018 में भीमा कोरेगांव मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। उन पर भारतीय दंड संहिता और यूएपीए की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। उन पर भाषणों के माध्यम से जाति आधारित हिंसा भड़काने और माओवादियों से संबंध रखने का आरोप लगाया गया है। वह नवी मुंबई की तलोजा सेंट्रल जेल में कैद है।
4-ज्योति जगताप
दलित और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और कबीर कला मंच सांस्कृतिक समूह की सदस्य ज्योति जगताप को सितंबर 2020 में भीमा कोरेगांव मामले के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था। उन पर आईपीसी और यूएपीए की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। वह मुंबई की बायकुला महिला जेल में कैद हैं।
5-हनी बाबू
दिल्ली विश्वविद्यालय में भाषा विज्ञान के प्रोफेसर हनी बाबू को जुलाई 2020 में भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार किया गया था। उन्हें माओवादी संगठनों से संबंध रखने, और जाति आधारित हिंसा भड़काने के आरोपों तहत हिरासत में लिया गया था। वह नवी मुंबई की तलोजा सेंट्रल जेल में कैद हैं।
6-सागर गोरखे
गायक, दलित अधिकार कार्यकर्ता, और कबीर कला मंच सांस्कृतिक समूह के सदस्य सागर गोरखे को भीमा कोरेगांव मामले में सितंबर 2020 में गिरफ़्तार किया गया था। माओवादी कार्यकर्ताओं के साथ उन्हें आईपीसी और यूएपीए की विभिन्न धाराओं के तहत हिरासत में लिया गया है। वह नवी मुंबई के तलोजा सेंट्रल जेल में कैद है।
7-महेश राउत
भूमि अधिकार कार्यकर्ता और प्रधानमंत्री के पूर्व ग्रामीण विकास फेलो महेश राउत को भीमा कोरेगांव मामले के सिलसिले में जून 2018 में गिरफ़्तार किया गया था। माओवादी संगठनों से कथित संबंध और जाति आधारित हिंसा भड़काने के लिए उन पर यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए हैं। राउत के समर्थकों ने आरोप लगाया है, कि नवी मुंबई के तलोजा सेंट्रल जेल में उन्हें उचित चिकित्सा सहायता नहीं दी गई है।
8-रमेश गाइचोर
दलित अधिकार कार्यकर्ता और कबीर कला मंच सांस्कृतिक समूह के एक अन्य सदस्य रमेश गाइचोर को भीमा कोरेगांव के सिलसिले में सितंबर 2020 में गिरफ़्तार किया गया था। बिना किसी मुकदमे के लंबे समय तक कारावास का सामना करना पड़ रहा है। वह नवी मुंबई के तलोजा सेंट्रल जेल में कैद है।
9-आसिफ़ सुल्तान
कश्मीरी पत्रकार और ‘कश्मीर नैरेटर पत्रिका’ के पूर्व संपादक आसिफ़ सुल्तान को अगस्त 2018 में "राज्य के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने" जैसे आरोपों के तहत गिरफ़्तार किया गया था। उनकी हिरासत ने क्षेत्र में प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में व्यापक चिंताएँ पैदा कर दीं।
10-खुर्रम परवेज
48 साल के खुर्रम परवेज, एक कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता और एशियन फेडरेशन अगेंस्ट इनवॉलंटरी डिसअपीयरेंस के अध्यक्ष हैं. खुर्रम परवेज़, जम्मू कश्मीर सिविल सोसायटी गठबंधन (जेकेसीसीएस) के कार्यक्रम समन्वयक भी रहे हैं। खुर्रम परवेज़ को नवंबर 2021 में यूएपीए के तहत राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा गिरफ्तार किया गया था। उन पर टेरर फंडिंग करने, और राज्य के खिलाफ साजिश रचने का आरोप है. मानवाधिकार संगठनों ने राजनीति से प्रेरित बताकर उन आरोपों की व्यापक रूप से आलोचना की है। खुर्रम परवेज, दिल्ली की रोहिणी जेल में कैद है।
लिस्ट इतनी लंबी है कि लिखते लिखते और आप पढ़ते पढ़ते थक जाओगे लेकिन न जाने यूएपीए जैसे कानून ग़लत फयेदा उठाता सिस्टम और सरकारी तंत्र देश को किस तरफ ले कर जा रहा है इसका अनुमान लगाया नहीं जा सकता है।